रचना-आशुतोष कुमार(08.11.2020) अब समय नहीं, दो अग्निपरीक्षा, 'माता सीता' जी बनकर। अब समय नहीं, गोविंद पुकारो, 'द्रोपदी' चीर-हरण पर। अब समय नहीं, तुम लुटती जाओ, 'दामिनी-निर्भया' बनकर। अब समय नहीं, तुम मरती जाओ, 'निकिता तोमर' बनकर। अब समय नहीं, तुम जलती जाओ, बहू बन दहेज़-कुंड पर। अब समय नहीं, तुम सहती जाओ, हर हिंसा पग-पग पर। अब समय नहीं, तुम झुलस जाओ, तेजाब से 'काजल' बन कर। परी नहीं तुम उड़न परी हो, डरी नहीं तुम दुर्गा-भाभी हो। तुम राधा हो,तुम चंडी हो। याद करो तुम,लक्ष्मी-सहगल हो। तुम लता हो,तुम आशा हो। तुम कल्पना,नासा में हो। तुम धरती हो,तुम शक्ति हो। नहीं रही तुम,सदा सर्वदा, सर पर घूँघट धर कर। अब समय नहीं, दो अग्नि-परीक्षा, माता सीता जी बनकर। प्रशासन में मिसाल बना दी, किरण बेदी बनकर। तुमने 'याज्ञवल्क्य' को हराया, 'मैत्रेयी-गार्गी' बनकर। शंकराचार्य को भी हराया, 'माता भारती'बनकर। पहला बालिका विद्यालय खोला, 'सावित्रीबाई फुले' बनकर। इतिहास रचा, मुगलों से लड़कर, 'रानी दुर्गावती' बनकर...