अधनंगी बुढ़िया(एक जीवंत कविता)






वह बुढ़िया जो अध नंगी

रहती थी ।

वह सूख कर गल चुकी थी,

फिर भी सत्तू बेचा करती थी।

सर पर डाला बोझ लिए 

बाजार जाया करती थी। 

लगता था राह चलते अब 

गिरी तब गिरी,  पर संभलते 

रुकते बैठते अपने कार्य को

पूरा करके ही घर वापस 

आती थी।वह बुढ़िया जो 

अधनंगी रहती थी ।

ना बेटा ना पतोहू,बेटी लेकिन

विधवा । इस बेटी की चार 

बेटियां, जवान पर अनाथ।

समाज के गुंडे बदमाश बेटी 

के चक्कर लगाते ।पर शादी 

के नाम पर केवल भोलेनाथ।

 किसी तरह माड़ भात से 

गुजारा किया करती थी।

वह बुढ़िया जो अधनंगी 

रहती थी ।

शरीर पर हड्डियां और केवल

 चमड़ी, इसे चाहिए भोजन 

पानी ,इसे चाहिए दवा दारू। 

इसे चाहिए गाड़ी की सुविधा, 

इसे चाहिए नयी आँख, पर 

वह केवल राम नाम लिए 

मरती थी, मानो भगवान का 

ही नशा किया करती थी ।

गजब यह अफीम का नशा है,
जो बुढ़िया लिया करती थी। 

वह गुड़िया जो अधनंगी रहती थी।

कुछ ही दिनों में इसकी मृत्यु 

होने वाली है,कैसी दुःखान्त

 घटना इस कहानी में होने 

वाली है ?बुढ़िया का इंतकाल

 हो गया, अब ब्राह्मण-

परिजन को चाहिए भंडारा।
हो गया वित्तीय संकट घर में, 

अजब नजारा ,जिसे बुढ़िया

 बड़े सहज से चलाया करती 

थी।वह बुढ़िया जो अधनंंगी

 रहती थी। वह गुड़िया जो 

अधनंगी रहती थी।वह 

बुढ़िया जो अधनंगी रहती थी।

(स्वरचित-आशुतोष कुमार,बोकारो,झारखंड)

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