किशोरावस्था,आलोचना और प्रबंधन।

नमस्ते बच्चों !

मैं आशुतोष !

अपने ब्लॉग पर आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूं!



https://youtu.be/RWWP3h_zpm8

 बच्चों ! कुछ कहावत हैं या दोहे या कविता हैं।आपने अवश्य पढा या सुना होगा।आज आप फिर ध्यान से सुनें !दोहे तो साधारण हैं लेकिन हमारे जीवन को बेहतर बना सकते हैं-


1. दोष पराए देखि करि चला हसत हसत,

अपने याद ना आवे जिसका आदि ना अंत।

[मतलब लोग दूसरे के दोष देख देख कर हँसा करते हैं लेकिन अपने दोष का उन्हें पता नहीं होता।जिस तरह मोमबत्ती प्रकाश तो देती है दूसरों को लेकिन अपने ही बुनियादी आधार को प्रकाश नहीं दे पाती है।]


2. बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय, 

जो दिल ढूंढा आपनो तो मुझसे बुरा ना कोय।

[इस दोहे में भी खुद में अंदर की ओर देखने/झाँकने पर बल दिया गया है कि यदि आप सही तरीके से दूसरों में बुराई ढूंढेंगे तो नहीं मिलेगी क्योंकि हो सकता है जिसे आप बुराई बोल रहे हैं,वह उसकी नजर में बुराई नहीं हो।यदि आप खुद में कमी ढूंढेंगे तो हजारों कमियां मिलेंगी।]


3. निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय,

बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय।

[इस दोहे का भावार्थ यह है कि हमें अपने आलोचक को सम्मान देना चाहिए।क्योंकि वह मुफ्त में ही आपके अंदर की कमियों को बता देता है,ताकि आप खुद को प्रक्षालित(धोकर)करके बेहतर कर सकें।]


     बच्चों यह सभी दोहे निंदा,आलोचना और उपेक्षा आदि से किस तरह निपटा जाए इसी के बारे में है। 








समस्या क्या है ?


जब बच्चे टीनएज(किशोरावस्था) में होते हैं, तो उन्हें अपने दोस्तों की बातें बहुत अच्छी लगती हैं लेकिन अपने से बड़े जैसे मम्मी पापा, दादी दादा, नाना नानी, भैया, चाचा चाची,जो उनसे उम्र में बड़े हैं, उनकी बातें उन्हें ज्यादा अपील नहीं करती इस समय ।क्योंकि उनके शरीर में तीव्र बायोफिजिकल चेंज हो रहे होते हैं ।उसी के अनुसार उनका मन भी चंचल होता है। वह अपने हमउम्र दोस्तों से ज्यादा नजदीक होते हैं ।उनकी बातें उन्हें ज्यादा अच्छी लगती हैं ।इस उम्र में टीका टिप्पणी टोका टोकी उन्हें अच्छा नहीं लगता है।



मैं अपना उदाहरण देता हूं कि हम जब हम लोग कुछ गलती करते थे, तो बचपन में मेरे पापा हमें बैठा कर ऊपर के दोहों को सुना कर हमें समझाया करते थे । कहते थे कि यदि कोई तुम्हारी उपेक्षा करता है, यदि कोई तुम्हारी आलोचना करता है,यदि कोई तुम्हारी निंदा करता है, तो तुम्हारे पास दो उपाय हैं-

1. पहला तो जाकर उनसे लड़ो,उनसे ऊंची ऊंची आवाज में बात करो, अपने मुंह से गंदी गालियां बको और अपनी ऊर्जा बर्बाद करो ।


2. दूसरा उपाय है-उन आलोचनाओं को सुनकर अपने अंदर की कमी और कमजोरी को दूर करके खुद को निखारे कि हमारे अंदर कौन सी कमी है?


 यह ठीक उसी तरह है कि कोई आदमी आपकी आलोचना करता है और आप उस पर गौर करके अपने आप में सुधार कर लेते हैं तो यह सोने पर सुहागा हो जाता है ।

मेरे मित्र की कहानी-


मेरे एक शिक्षक मित्र श्री कामदेव विश्वकर्मा जी (गिरिडीह,झारखंड)का सुनाया हुआ प्रसंग याद आ रहा है ।उन्होंने निंदा से निपटने के लिए,आलोचना से निपटने के लिए हमारी कड़ी को और आगे बढ़ाया।


उन्होंने एक कहानी सुनायी, कि एक शहर में एक बहुत अच्छा फेमस मूर्तिकार रहता था ।मतलब मूर्ति बनाने वाला कलाकार रहता था।

वह बहुत अच्छी मूर्ति बनाता था । दूर-दूर से लोग उसकी मूर्ति को देखने आते थे और कई बड़े-बड़े अमीर लोग उनकी मूर्ति को हजारों लाखों में खरीद करके ले जाते थे । 


इसी क्रम में एक लड़का आया । उसने प्रणाम किया मूर्तिकार को और कहा गुरु जी मैं गरीब आदमी हूं मुझे भी मूर्ति बनाना सिखा दीजिए। मेरा भी जीवन यापन अच्छा होगा । 


कलाकार ने कहा मैंने मूर्ति इस तरह बनाना सीखने में कुल 30 साल लगाए हैं। तुम को कम से कम 5 साल तो लगाना ही पड़ेगा। ऐसे थोड़े ना कोई सीख लेता है?!


 इसके बाद वह लड़का कलाकार का शिष्य बन गया और सीखना शुरू कर दिया। समय गुजरता गया 5 साल हो गए ।अब गुरुजी ने कहा-तुम्हारी परीक्षा की घड़ी आ गई। शिष्य ने कहा-जी मैं तैयार हूँ। गुरुजी ने कहा एक मूर्ति बना लो और शहर के बीचों-बीच इसे चौक(गोलम्बर) के पास रख दो । साथ में एक बड़ा सा पन्ना(कॉपी का पेज) भी रख दो और उसमें लिख दो कि मेरी मूर्ति  में कुछ कमी है या कुछ त्रुटि है तो इस पन्ने में कृपया लिख दें ।


हर तरह के लोग आते गए। मूर्ति को देखते गए । रिक्शावाला आया कुछ कमी लिख दिया। ठेला वाला आया कुछ कमी लिख दिया। मजदूर आया कुछ कमी लिख दिया । दुकान वाला आया कुछ कमी लिख दिया । पुलिस आया कुछ लिख दिया । शराब पीने वाला आया वह भी कुछ लिख दिया ।

 सात दिन के बाद शिष्य ने वह मूर्ति और कागज वापस लाया और गुरु जी को दिखाया ।उसने देखा कि लोगों ने उसकी बनाई मूर्ति में 100(सौ) गलतियां ढूंढकर के निकाले हैं।  शिष्य निराश हो गया। शिष्य ने गुरु से कहा- गुरु जी मैं परीक्षा में फेल हो गया। गुरु जी ने कहा-ऐसी कोई बात नहीं है । जाओ इसी मूर्ति को फिर वापस ले जाओ और इस बार कागज में लिख दो कि हमारी मूर्ति में जो कुछ भी कमी है कृपया उसे ठीक कर दें । 


इस बार भी इसी तरह हर तरह के लोग आए मूर्ति देखकर चले गए। रखा और लिखा हुआ कागज भी देखा । उसमें लिखा हुआ था कि जो कमी है उसे सुधार दें।लेकिन किसी ने कुछ नहीं सुधारा ।अपना अपना रास्ता चलते गए ।सात दिन के बाद शिष्य मूर्ति और कागज लेकर के गुरुजी के पास पहुंचा। शिष्य ने गुरुजी को कहा कि गुरुजी देखिए-इस बार किसी ने कोई भी चीज नहीं लिखी है,कोई सुधार नहीं किया है,क्योंकि उन्हें मूर्ति बनाने की कला का ज्ञान ही नहीं था ।


तो बच्चों ! इस कहानी से क्या सीख मिलती है कि जब हम लोगों से उम्मीद करते हैं अपने कार्य के बारे में प्रशंसा सुनने के लिए लोगों की ।तो लोगों का अपना अपना मत होता है। लोगों की अपनी-अपनी दृष्टि होती हैं। उसके अनुसार वह आपके कार्य के बारे में अपना मत सुना देते हैं। जिस तरह क्रिकेट का वर्ल्ड कप मैच चलता है। मान लो सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली ,सुनील गावस्कर या महेंद्र सिंह धोनी जैसे लोग क्रिकेट खेल रहे होते हैं और संयोग से वह आउट हो जाते हैं तो एक छोटा से छोटा आदमी, जिसे क्रिकेट के बारे में जरा सा भी एक्सपीरियंस नहीं है वह झूठ का परामर्श दिए फिरता  है ।।


 इसी तरह जब कोई हमारे कार्य के बारे में फीडबैक देता है ,आलोचना करता है तो हमें उस फीडबैक की आलोचना को तीन चीजों की कसौटी पर कसना चाहिए। 

1.सबसे पहला तो यह कि जो आपके कार्य की आलोचना कर रहा है । वह क्या आपका शुभचिंतक है ?-एक शुभचिंतक आपके अच्छे कार्यों की प्रशंसा करेगा और आपके गलत कार्यों की या आपके कार्य में मौजूद कमी को भी बताएगा।

नोट- याद रखें यहां चापलूस हमारे शुभचिंतक नहीं होते क्योंकि वह सिर्फ चापलूसी करता रहता है । तो अपने शुभचिंतक की बात हमें जरूर सुननी चाहिए ।


2.दूसरा जो आपकी आलोचना कर रहा है उसकी बातों को सुनकर के आप अपने अंदर झांकें। और अपनी कमी को ढूंढें कि वास्तव में कहीं हमारे अंदर कमी तो नहीं ? इससे आपके अंदर निखार और तेज आएगा.। आपकी कमियां धीरे-धीरे दूर हो जाएंगी।इसे हमें सकारात्मक लेना चाहिए (अपने कार्य के फीडबैक के रूप में।)


3.तीसरा जो आपकी आलोचना कर रहा है आप देखें कि आपके कार्य के बारे में उसे कितना अनुभव है ? यदि कोई लड़का क्रिकेट खेलता है,नया नया है और महेंद्र सिंह धोनी या सचिन तेंदुलकर जैसे लोग उस लड़के को सलाह देंगे तो उस लड़के को उनकी बात जरूर सुननी चाहिए । क्योंकि क्रिकेट के बारे में धोनी और तेंदुलकर को काफी ज्यादा अनुभव है ।


इसी तरह हमें अपने जीवन में भी करना चाहिए कि हम जो काम कर रहे हैं उसके बारे में किसी को ज्यादा अनुभव है और वह यदि बोल रहा है तो हमें उसकी बात अवश्य सुननी चाहिए।


 इसी प्रकार हमें अपने घर में जब हमें हमारे मम्मी पापा या दादा-दादी या नाना-नानी जब किसी काम को करने से रोकते हैं टोकते हैं तो हमें उनकी बात माननी चाहिए । क्योंकि वह हमारे शुभचिंतक हैं । उन्हें जीवन का हमसे बहुत ज्यादा अनुभव है और जो कार्य आप करने जा रहे हैं,उसका उनके पास अच्छा अनुभव है।


 तो ठीक है बच्चों ! आज इतना ही । मिलते हैं अगले दिन कुछ नयी कहानी और नए प्रेरक प्रसंग के साथ । धन्यवाद !


आपका-आशुतोष कुमार।


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